उन्होने कहा कि प्रोफ़ेसरशिप में आरक्षण नही मिलेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मेरा तो नेट भी नही है
उन्होने कहा कि MCM नहीं बढ़ेगी
क्या फ़र्क पड़ता है मेरे घर वाले पैसे भेजते है
उन्होनें कहा कि पिछड़े शहर के लोगों कि कोई लाभ नही मिलेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मै तो दिल्ली/पटना/ कोलकाता से हूँ
उन्होनें कहा कि महिलाओं के लिये आरक्षण नही चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो मर्द हूँ
उन्होने कहा कि बस पास का दाम चार गुना होगा
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो आटो में चलता हूँ
उन्होनें कहा कि मीटिंग और फ़िल्म के लिये सेसंर बोर्ड का सर्टिफिकेट चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो “प्रिया” जाता हूँ
उन्होने कहा कि मत पढ़ो मार्क्सवादी साहित्य
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो UPSC दे रहा हूँ
उन्होनें कहा कि प्राईवेट स्कूल की फ़ीस बढ़नी ही चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो अमेरिका जा रहा हूँ
उन्होनें ने कहा उच्च शिक्षा का बजट नहीं बढ़ेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो बरिस्ता में पार्ट टाईम हूँ
उन्होने कहा कि ज.ने.वि. में दिमाग वालों का प्रवेश वर्जित है
क्या फ़र्क पड़ता है मेरा दिमाग तो MNC के पास गिरवी है।
7 comments:
sahee bataya ...
ant men to solid panch mara hai ...
aabhaar ,,,
good...well said
n attack vigorously all those fake krantikaris as well who go away as soon as they get lucrative opportunities and they are more dangerous than straight perverts...be aware they are in disguise and harmful like there MNC counterparts...
Thanks Amrendra!
Thanks Madurim
लड़ाई के लिए जिंदा रहना ज्यादा जरुरी है, बचकाने वामपंथी जान देके शहीद होते रहे हैं, मगर उनकी शहादत क्रांति की चिंगारी उस हद तक नहीं भड़का सकी, नतीजा हमारे आपके सामने हैं. आपके हमारे क्रांतिकार विचार सिकुड़ते जा रहे हैं, पूंजीवाद और साम्राज्यवाद फैलता जा रहा है. आपकी सारी बातें सही है,लेकिन मुझे लगता है की MNC में काम करने वाले सारे लोगों को अपना दुश्मन और पूंजीवादी घोषित रखा है आपने और आपके बहुत से साथियों ने , मजदूर वर्ग वहां भी है, रात की शिफ्ट में काम हो रहा है वहां भी, ओवरटाइम और शोषण वहां भी है. आप MNC में काम करने वाले सारे लोगों को विभाजित न करें. चाटुकारों,चापलूसों और मेनेजर वर्ग से आपकी दुश्मनी हो सकती है. लेनिन से सीखने की जरुरत है कि मजदूर वर्ग का प्रतिनिधि जार के दरबार से लेके सड़क तक कहीं भी हो सकता है. आपकी कविता के आखिरी पंक्तियों के उपर लिख रहा हूँ इतना, बाकी सब बातों से इत्तेफाक मैं भी रखता हूँ कामरेड.
गुरु भाई !
आपकी बातों से सहमत हूँ, माफ़ करे आखिरी पंक्ति से मेरा मतलब सिर्फ़ दिमाग गिरवी रख देने से है और इशारा मेरे छोटे भाईयों की उस पीढ़ी से है जो केवल Nokia के माडल के बारें में सोचती है, MNC हमारा शोषण कर रही हैं और कई बार देखता हूँ की वहाँ काम करने वालों की स्थिति बाँड के चक्कर में बंधुआ मज़दूरो सी है,
इशारा केवल दिमाग तक गिरवी रख देने की ओर है, मैं भी यह मानता हूँ कि हम जहाँ भी हो वहीं कम से कम सच के पक्ष में हो!
bahut hi sidhe tarike se apni baat keh di aapne ... bahut achhi kavita hai :)
धन्यवाद, एंजल !
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