Saturday, February 13, 2016

कल से सोच रहा था की जे एन यू के मुद्दे पर लिखूं या नहीं | मेरे लिखने या न लिखने से बहुत फर्क पड़ जायेगा ऐसा नहीं है पर लगा कि शायद चुप रहना सहमति न मान ली जाय!
DSU जैसे एक छोटे संगठन ने एक कार्यक्रम कराया| DSU हमेशा से अति वामपंथी संगठन रहा है और ऐसा नहीं की ये कल बना है ये सालों  से है और मैंने दस सालों में उसकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं देखा है, वो हमेशा से माओवाद का समथर्न करते रहे है पर जैसा की बहुतो ने कहा है की वह जे एन यू की प्रतिनिधि आवाज़ नहीं है| और न ही JNUमें संगठन बनाने पर कोई पाबंदी है JNUमें एक हिन्दू विद्यार्थी सेना भी है, कहने का मतलब ये कोई भी, एक अकेला भी एक संगठन बना सकता है | लेकिन इनमे से कोई भी आवाज़ JNUकी एकलौती  आवाज़ नहीं है | आप कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों दोनों  पर पर कार्यक्रम करा सकते है, सरकार समथर्क और विरोधी भी , शायद यही JNU की खूबी है की यहाँ हर विचार के लिए जगह है |
दूसरी  बात कि अफज़ल गुरु पर कोई कार्यक्रम होना चाहिए या नहीं ? संसद हमलों में जो लोग पकडे गए उनमे से दो को निर्दोष पाया गया , एक अफज़ल को फांसी हुयी | मैं जो भी मानूं पर बहुत से न्यायविदो ने कहा की उसके खिलाफ फांसी  लायक सबूत नहीं थे| काटजू ने खुले आम कहा की यहाँ न्याय में गलती हुइ है(आप चाहे तो उन्हें पागल कह सकते है ) | आप सुप्रीम कोर्ट की बात को ब्रम्ह वाक्य मान सकते है लेकिन दूसरो से ये अधिकार नहीं छीन सकते की वो इस फैसले पर सवाल खड़े न करे, आप उन्हें ये सवाल पूछने से नहीं रोक सकते की क्यों उसकी लाश उसके घर नहीं जाने दी गयी| बहुत सारे मुसलमान लड़के पिछली सरकार में पकडे गए ये कहकर की वो आंतकवादी है , सालो जेल में रहने के बाद वो निर्दोष पाए गए, ये मानने वाले कि अफज़ल को फंसाया गया था बाहर के नहीं है आपके इसी देश के है अगर उनकी आवाज़ बहुमत की आवाज़ नहीं है , अगर वो “राष्ट्र की सामूहिक चेतना” में शामिल नहीं है जिसके लिए अफज़ल को फांसी दी गयी तो वो क्या देशद्रोही हो गए ?
और ये sedition का मतलब क्या है राजद्रोह या देशद्रोह ? व्यवस्था की आलोचना करने वाले लोग जैसे कबीर कला मंच, असीम त्रिवेदी, अरुंधती, प्रोफेसर साईबाबा आदि क्या इसलिए देशद्रोही है की वो आपकी हमारी समझ में सहज हो चुकी व्यवस्था पर सवाल कर रहे है ? पूछ रहे है की आदिवासी का मतलब माओवादी , कश्मीरी मुसलमान का मतलब आतंकवादी कैसे हो गया? कार्पोरेट घरानों को ज़मीन न देना, अपने जल जंगल ज़मीन की बात करना, और सरकार का विरोध करना माओवाद कैसे हो गया, कश्मीर में आधी बेवाओं के शौहरों की बात करना , घरो के बाहर भारतीय सेना की मौजूदगी और AFSPA का विरोध करना आतंकवाद कैसे हो गया ?
रही बात पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत की बर्बादी वाले नारों की , JNUके लोग ये कह चुके है कि ये नारे लगाने वाले बाहरी थे, आज आये एक वीडियो में कहा जा रहा है की ये ABVP के लोग थे | मैं दस सालो तक JNUमें रहा हूँ, DSU ने आज तक ये नारे नहीं लगाए | पर एक दूसरी बात भी है, JNUइसी समाज इसी देश का है, अपने आप में एक छोटा भारत है , भारत की अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दोनों यहाँ है | आपको लगता है की जो कश्मीर के वो लोग जिन्होंने सेना की ज्यादतियां देखी है, जिनके घर के किसी आदमी को सेना एक दिन पूछताछ के लिए ले गयी और वो कभी नहीं लौटा उनके लिए भारत शब्द का मतलब क्या है ? आप सेना के किसी जवान के फोटो लगा कर देशभक्ति के सबूत के तौर पर लाइक्स माँगते रहते है, आपको क्या लगता है उस सेना का मतलब छतीसगढ़ के आदिवासी के लिए क्या है ? आप बिलकुल नहीं देख पाते की मणिपुर के औरते क्यों निर्वस्त्र होकर कहती है Indian army rape us! इरोम शर्मिला क्यों भूख हड़ताल पर है ? जिस सोनी सोरी के गुप्तांग में पत्थर भर दिए गए उसके लिए पुलिस का मतलब “शांति सेवा न्याय” है ? नार्थ ईस्ट के लडके ने सालो पहले जब मुझे Indian Friend कहा तो  मुझे भी बुरा और अजीब लगा पर बहुत बाद में समझ आया की वो ऐसा क्यों कह रहा था | JNUइनसे अछूता नहीं है कश्मीर , नार्थ ईस्ट , छतीसगढ़ के ये लड़के लडकियां JNUमें पढ़ते है वो वही कह रह है जो उन्हें लगता है| सेना, पुलिस, आपके लिए देशभक्ति का stimulation  होगी उनके लिए नहीं, फर्क सिर्फ इतना है की दुसरे किसी विश्विद्यालय में शायद वो वो सब न कह पाते जो वो JNUमें कह पाते है | पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाले और भारत से अलग होने की बात करने वाले लोग हमारे इसी देश में है, पर अक्सर हम उनको समझने के बजाय, बजाय ये देखने के हमारे ही देश के नागरिक ऐसा क्यों कह रहे है , समस्या की जड़ तक पंहुचने के बजाय उन्हें चुप करा देते है| बहुत साल नही हुए जब तमिलनाडु में भारत के झंडे जलाये जा रहे थे , बहुत साल नहीं हुए जब हमने त्रिभाषा फार्मूले के तहत उन पर हिंदी थोप दी थी बिना पूछे की वो क्या चाहते है ? किसी भी घर में कोई अफज़ल नहीं होना चाहिए पर जो लोग कह रहे है की हर घर से अफज़ल निकलेगा उन्हें चुप करने की  जगह एक बार रुक कर देखिये को वो ऐसा क्यों कह रहे है ? क्या भारत का मतलब हमारी राज्यसत्ता भर है ? ये सवाल मुश्किल है इनके लिए धैर्य चाहिए और हम instant देशभक्ति चाहते है , इंस्टेंट क्रांति चाहते है |
आपको बुरा इसलिए भी लग रहा है की जो आवाज़े बहुत दूर कश्मीर ,नार्थ ईस्ट , छतीसगढ़ में थी अचानक JNUमें सुनायी दे रही है , JNUJNUइसलिए है की वो इस आवाजों को चुप नहीं करता बल्कि इसने संवाद की कोशिश करता है | दरसल दोष हमारे चश्मे का है , हम आदि हो गए है की किसी भी जगह , संस्थान को एक आवाज़, एक विचारधारा के केंद्र के रूप में देखने के | होता भी यही है की हाशिये की आवाज़े खामोश कर दी जाती है , चाहे वो बंगाल हो या गोरखपुर विश्विद्यालय | JNUयही स्पेस है जहां आप बिना डरे अपनी बात रख सकते है जैसे  टैगोर कहा करते थे where mind is without fear | पिछले कुछ दशको में ये स्पेस तेज़ी से ख़तम  हो रहे है | विश्वविद्याल की अवधारणा ही यही है जहां विचारों पर कोई पाबंदी न हो , आप सोच सके , देख सके अपने विचार चुन सके और आप भले अकेले हो लेकिन आपके सोचने कहने की आजादी हो! मेरे लिए JNU एक विश्विद्यालय नहीं एक विचार है जहां मैं बिना डरे, अपनी बात कह सकूँ, आलोचना सुन सकूँ....
Where the mind is without fear and the head is held high
Where knowledge is free