Tuesday, May 19, 2015

शहर , दोस्त और फेसबुक तस्वीरें 


हम उन तस्वीरों को देखते थे 
और मिलाते थे उन चेहरों से जो हमने सालो पहले देखे थे 
जो  स्मृति के ताखे पर कटोरदान से रखे थे 
हम सोचते थे कि वो शक्लें कभी न बदलेंगी 
समय की बर्फ में जमी हुयी 
और आज भी वैसी की वैसी होंगी 


मेरे ज़माने का गायक 
जिसकी नक़ल में मैंने बढाने चाहे थे बाल 
बदल गया था एक सफेद बालों वाले अधेड़ में 
और मैं सोच रहा था की वो अब अपना गोल चश्मा क्यों नहीं लगाता 


माँ की सहेली जो तबला बजाने से लेकर शेक्सपियर तक जानती थी 
अचानक पाया कि समय की लकीरों ने लिख दी है उनके चेहरे पर 
इबारत एक अबूझ सी लिपि में 


मेरा भाई जो हमारा  हीरो हुआ करता था
जो लम्बी डायरियों में लिखा करता था कविताएं 
और निर्मल वर्मा और शरत चन्द्र की सतरें 
अपनी तोंद संभालते हुए हांफ रहा है अपनी एक नयी तस्वीर में 


हम जानते थे की समय हमें छुएगा 
और बदल देगा 
समय के रेगमाल से बदल जायेंगे रंग 
पर हम उम्मीद करते रहते थे कि
सब कुछ रुका होगा मेरे शहर में 


हम लौट सकेंगे छुट्टियों में अपने शहरों को 
बतिया सकेंगे पुराने दोस्तों से 
पुरानी शरारतों
पुराने असफल प्यारों के बारें में 
दोहरा सकेंगे  पुराने जुमलों, किस्सों को बैठे नए ओवरब्रिज पर 


ये जानते हुये की वो दोस्त भी वैसा का वैसा न रहा 
उसके बच्चे स्कूल जा रहे थे 
उसकी बातें हमारी नौकरियों 
कुंवारे दोस्तों की शादियों के गिर्द थी 
पर उसकी महीन हंसी के एक अनजाने क्षण में 
उभर आती थी उसकी पुरानी  शकल 


हम जानते थे की सब कुछ बदल जायेगा 
या बदल गया होगा 
जानते  और बूझते 
मन ही मन हम करते थे प्रार्थना
कि कुछ न बदला हो 
दुनिया मेरे घर के आंवले के पेड़ की तरह 
वैसी की वैसी हो 
हमारे इंतज़ार में 

तथ्य और उम्मीद के इस दुचिते में 
उम्मीद का जीते रहना चमत्कार सा था 


और आधुनिक युधिष्ठिर का सबसे बड़ा आश्चर्य  ! 

(Photo Credits: Chandrkant)