Tuesday, April 6, 2010

B.B.U.(होने वाली B.B.University) उर्फ़ JNU(वर्तमान) के छात्र का प्रतिज्ञा पत्र
मैं अपने परमेश्वर/ बनाने वाले/ पीर/ मानने वाले वगैरह वगैरह की कसम खा कर कहता हूँ कि मैं आज के बाद कैम्पस में वही फ़िल्में देखूँगा और दिखाउँगा जिन्हे परम श्रद्धेय, परम बुद्धिजीवी, माँ-बाप सरीखे सेंसर बोर्ड की अनुशंसा प्राप्त हो। सेंसर बोर्ड पूज्य है , और जैसे इस देश में माता-पिता वर/वधू चुनते है वैसे ही यह बोर्ड हमारे लिये फ़िल्में चुनता है क्योंकि मेरे पिता जी मानते है कि 28 साल का होने के बाद और तकरीबन 7 साल ज.ने.वि. में मग़ज खपाने के बाद भी मुझ में अकल नहीं है । मैं 28 साल का अधबूढ़ा और मैं ही क्या इस कैम्पस के प्रोफ़ेसर जो अक्सर ये फ़िल्में/ वृत्तचित्र देखने हास्टल वगैरह में आ जाते हैं उन्हें भी बुरी फ़िल्मों से दूर रहना चाहिये क्योंकि बुरी फ़िल्में बुरा असर डालती है । श्रद्धेय कुलपति जी अगर आप पहले ही आ जाते तो मेरी और मुझ जैसे बूढ़ों की जवानी डेविड धवन की कामेडी और कान्ति शाह की डाकूओं वाली फ़िल्में देख कर खराब न होती। खैर..देर आये दुरुस्त आये; अब सब सत्यं ,शिवम सुन्दरम होगा । ये राकेश शर्मा टाईप के लोग और ई वृत्तचित्र बनाने वाले प्रकाश रे क्या जाने की राष्ट्रीय एकता कितनी बड़ी चीज है। मैं अहद लेता हूँ मैं इन बुरी फ़िल्मों से दूर रहूँगा और हमेशा पार्टनर, ओम शान्ति ओम जैसी फ़िल्मे ही देखूँगा और दिखाउँगा


मैं अग्नि, जल वगैरह वगैरह (स्थानीय शर्ते लागू, पानी नही आ रहा हो तो पेप्सी मान लें,आग न हो तो पड़ोसी से सिगरेट ले लें) को साक्षी मान कर यह शपथ लेता हूँ कि मैं पढ़ाई के अलावा कोई बात नही सुनूँगा। मैं बुद्ध का केवल बुद्ध शरणं गच्छामि पढूँगा और ये कतई नहीं सुनूँगा कि यह किसके प्रतिकार में आया था, डा. अम्बेडकर हमारे संविधान निर्माता थे के अलावा उनके बारे में कुछ नहीं पढूँगा। मैं हमेशा अरुधंति के उपन्यास पढूँगा और उनको सुनने कभी नहीं जाउंगा। मैं अहद लेता हू कि मैं तहलका के अजित साही की पब्लिक मीटिंग में न जाउँगा ना होने दूँगा । हम कैम्पस में हमेशा अच्छी अच्छी बाते कहेंगे और सुनेंगे । हम कश्मीर से लेकर नरेगा, झारखण्ड , बाटला हाउस, किसानों, मज़दूरो की कोई बात नही करेंगे अगर कभी की भी तो “ अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है” के सिलसिले में बात करेंगे । मैं हमेशा चेतन भगत की किताबें पढ़ूँगा और उन्हें लेक्चर देने कैम्पस बुलाउँगा , मैं अरिन्दम चौधरी जी से आगे रहने के गुर सीखूँगा और किसी योगा गुरु से आफ़िस का तनाव भगाने के नुस्खे सीखूँगा । मैं कोई बुरी बात नही सुनुँगा ; ई अरुन्धति और तसलीमा को का मालूम राष्ट्रीय एकता कितनी बड़ी चीज है ।






मैं कभी कुछ नहीं बोलूँगा ………

Saturday, April 3, 2010

क्या फ़र्क पडता है

उन्होने कहा कि प्रोफ़ेसरशिप में आरक्षण नही मिलेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मेरा तो नेट भी नही है
उन्होने कहा कि MCM नहीं बढ़ेगी
क्या फ़र्क पड़ता है मेरे घर वाले पैसे भेजते है
उन्होनें कहा कि पिछड़े शहर के लोगों कि कोई लाभ नही मिलेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मै तो दिल्ली/पटना/ कोलकाता से हूँ
उन्होनें कहा कि महिलाओं के लिये आरक्षण नही चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो मर्द हूँ
उन्होने कहा कि बस पास का दाम चार गुना होगा
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो आटो में चलता हूँ
उन्होनें कहा कि मीटिंग और फ़िल्म के लिये सेसंर बोर्ड का सर्टिफिकेट चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो “प्रिया” जाता हूँ
उन्होने कहा कि मत पढ़ो मार्क्सवादी साहित्य
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो UPSC दे रहा हूँ
उन्होनें कहा कि प्राईवेट स्कूल की फ़ीस बढ़नी ही चाहिये
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो अमेरिका जा रहा हूँ
उन्होनें ने कहा उच्च शिक्षा का बजट नहीं बढ़ेगा
क्या फ़र्क पड़ता है मैं तो बरिस्ता में पार्ट टाईम हूँ
उन्होने कहा कि ज.ने.वि. में दिमाग वालों का प्रवेश वर्जित है
क्या फ़र्क पड़ता है मेरा दिमाग तो MNC के पास गिरवी है।

Thursday, April 1, 2010

Dear Vice Chancellor sir,
I just got to know about the orders released from your administration, I am sorry for my poor English skills, what to do I study Indian languages. Anyways according to this order JNU students can’t watch a movie/ documentary which isn’t issued an Indian censor certificate. Dear Sir! I beg your pardon but this University is known for its intelligence and rationality not for Censor board guidance. If I accept your logic that means we (JNU students) wouldn’t be able to watch movies like Fahrenheit 9/11(dir. Michael Moore), Final Solution (dir. Rakesh Sharma) , Paanch(Anurag Kashyap), The Bicycle Thief (dir. Bergman) as they weren’t released in India. I personally believe that every artist and Individual has a right to express his views, we can debate on that, we can agree or disagree on that, and for your kind information Sir! For us JNU is family not some mob or something. I don’t know whether you had been to a shop named Magic Lantern, close to Nehru Place (Delhi), or not which sells all kind of documentaries, my only question is who will decide which movies should we watch and which should we ignore. If you yourself want to decide this then why don’t you shut down schools like School of Languages & School of Arts and Aesthetics as tomorrow you will decide that we should read PAASH (a revolutionary poet of Punjabi) or not. Why don’t you release another order of banning sales of books by Prof. Chaman Lal and Arundhati Roy, and do one more thing in that succession that Vidrohi ji should also be thrown out of JNU(He sits on Dhabas and recites his poetry about Indian civilization and satires on Gandhi Topi in some meetings, isn’t it Sir? ) as these people disturb and raise questions.
Sir! In that order it is also stated that we should not organize any mess meetings (dining hall meetings) which might disturb the national HARMONY & PEACE. Sir! Can you tell me which meeting disrupted the National HARMONY & PEACE in past few years? And if meetings disturb the HARMONY & PEACE, then we should not talk about the dangers of Hindu fascist (as I am a Hindu and my sentiments might be hurt, isn’t it Sir!) we should not talk about the Budget, neither debate on 84 riots, nor Gujarat, nor on Pune Panthers, nor on the problems and corruption in NREGA as we came to study here and hell with that if our PhDs are entitled on NREGA or Communal problems in India and the writings of Rahi Masoom Raza ; National Integration and Harmony are the most important things, Isn’t it Sir ? Sir! I am really sorry as I thought that we learn more in mess meetings and on Dhabas than in class rooms in JNU ; it’s all the fault of my senior students who showed me so many dreams about JNU, I will question them for sure in next JNU alumni meet .
We are so fortunate that we have such a multidimensional, multi disciplined Vice Chancellor, who is expert in everything as our dear Himesh Reshmia. Sir! I have a request to you I want to ask some questions about Kabir to you and you can also let me know whether my PhD topic is a threat to National Harmony and Integration or not?
Thank you Very much
Vivek Kumar Shukla, Centre of Indian languages, JNU

an open letter to JNU Vice Chancellor Sir!!

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलपति के नाम खुला पत्र

आदरणीय कुलपति महोदय,

अभी अभी आपके प्रशासन द्वारा निर्गत आदेश के बारें में ज्ञात हुआ(माफ़ कीजिये मैं सामान्यतया इतनी कठिन हिन्दी नहीं बोलता पर क्या करे प्रशासन या तो अंग्रेज़ी समझता है या कठिन हिन्दी ). खैर ... इस आदेश के अनुसार ज.ने.वि. के छात्र वो कोई भी फ़िल्म या वृत्तचित्र (documentary) नहीं देख सकते जिन्हें नियंत्रक मंडल (censor board) की सहमति प्राप्त न हो। आदरणीय महोदय, क्षमा करें यह विश्वविद्यालय अपनी बुद्धि और ज्ञान के लिये जाना जाता है न कि किसी नियंत्रक मडंल के लिये। यदि आपका तर्क मान ले तो , तो हम कभी भी, Fahrenheit 9/11(dir. Micheal Moore) , Final Solution(dir. Rakesh Sharma) , Paanch(Anurag Kashyap), The Bicycle Thief (dir. Bergman) जैसी फ़िल्में देख ही नही पायेंगे क्योंकि ये फ़िल्मे रीलिज ही नही हुई। मैं व्यक्तिगत रूप से ये मानता हूँ कि कि हर कलाकार और व्यक्ति को यह अधिकार है कि वो अपनी बात रखे , हम उस पर बहस कर सकते है, सहमत या अहसमत हो सकते है, और ज.ने.वि एक परिवार है लोगों की एक भीड़ नही। पता नही आप नेहरु प्लेस के पास magic lantern नामक दुकान पर गये या नहीं जो तमाम सारे वृत्तचित्र बेचते है, मेरा सवाल केवल यह है कि कौन यह तय करेगा कि हम कौन सी फ़िल्मे देखे और कौन सी नहीं? यदि आप ही यह तय करना चाहते है तो तो SL और SAA जैसे स्कूल बंद कर दीजिये क्योंकि कल आप भी यही तय करेंगे कि हम “पाश” पढ़े या नहीं। फिर आप ये भी किजिये कि अरूंधति राय और प्रो. चमन लाल की किताबे यहाँ बिकवाना बंद कर दीजिये , और लगे हाथ विद्रोही जी को भी तड़ीपार कर दीजिये, क्यों कि ये लोग सवाल करते है न सर !

सर! आपने उस आदेश में यह भी कहा है कि ऐसी कोई भी सभा ना आयोजित ना की जाये जिससे राष्ट्रीय एकता और सदभाव को ख़तरा है, सर आप बता सकते है कि पिछले कुछ सालों में किस सभा से ये ख़तरा हुआ, अगर यही है तो तो हम हिन्दू फ़ासिस्टों के बढ़ते ख़तरे पर बात न करें(मैं हिन्दू हूँ और उससे मेरी भावनायें भड़क सकती है न सर!!!), हम बजट पर न बात करे, ना आपरेशन ग्रीन हँट पर, ना ही चौरासी के दंगों पर, ना गुजरात पर, ना पूना पैंथर पर ,ना नरेगा की खामियों पर, हम यहाँ पढ़ने आये है अब क्या करें अगर हमारी PhD का topic नरेगा, या भारत की साम्प्रदायिक समस्यायें और राही का कथा साहित्य है, राष्ट्रीय सदभाव सबसे जरूरी है, हैं ना सर ? माफ़ कीजिए मुझे लगा कि ज. ने. वि. में क्लास से ज़्यादा पढ़ाई मेस की मीटिंग में होती है, गलती मेरे सीनियरों की है जिन्होनें जाने क्या क्या ख़्वाब दिखायें थे मुझे, अगली Alumni Meet में पूछूँगा उन से।

हमारा यह सौभाग्य है कि हमें आप जैसे बहुमुखी प्रतिभा वाला हिमेश रेशमिया सरीखा कु्लपति मिला जो हर कला में पारंगत है, सर आपसे अनुरोध है कि मुझे कबीर के बारें कुछ बातें पूछनी है, और आप मुझे यह भी बता दीजियेगा की मेरे शोध के विषय से राष्ट्रीय सदभाव और एकता को कोई ख़तरा तो नहीं?

आपका- विवेक कुमार शुक्ल; भारतीय भाषा केंद्र, ज. ने.वि.